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शनिवार, 16 मार्च 2024

कुलदेवी और कुलदेवता



    भारत में ज्यादातर समाज या जाति के कुलदेवी और देवता होते हैं। भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी और कुलदेवता की पूजा करते आ रहे हैं। हालांकि आजकल अधिकतर परिवारों ने अपने कुलदेवी और कुल देवताओं को पूजना या उनको याद करना छोड़ दिया है। संभवत: इसी के कारण वे घोर संकट में घिरे हुए हैं। यदि ऐसा है तो 4 उपाय करें और संकटों से मुक्ति पाएं।*

1. जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या कुलदेवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। कुलदेवी की कृपा का अर्थ होता है सौ सुनार की एक लोहार की। बिना कुलदेवी कृपा के किसी के कुल का वंश ही क्या कोई नाम, यश आगे बढ़ नहीं सकता। अत: कुल देवी और देवता के लिए प्रतिदिन सुबह और शाम को भोग निकालें। और उनके नाम का उच्चारण करें। नाम नहीं याद हो तो स्थान का उच्चारण करें। जैसे, डल्ला वाली कुलदेवी की जय। स्थान का नाम भी नहीं मालूम हो तो तो हे माता कुलदेवी जी और कुलदेवता जी आपकी सदा ही जय हो। दुर्गा माता जी की जय, भैरू महाराजजी की जय।

2. एक ऐसा भी दिन होता है जब संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं। जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं। कुलदेवी या कुल देवता के स्थान से आपके पूर्वजों का पता लगता है। जिसे यह नहीं याद है वे भैरू महाराजजी और दुर्गा माताजी के मंदिर में जाकर उनके नाम का भोज चढ़ाएं और पूजा करें।

3. कुल देवी या देवता के स्थान पर जाकर एक साबूत नींबू लें और उसको अपने उपर से 21 बार वार कर उसे दो भागों में काटकर एक भाग को दूसरे भाग की दिशा में और दूसरे भाग को पहले भाग की दिशा में फेंक दें। इसके बाद कुलदेवी या देवता से क्षमा मांग कर वहां अच्छे से पूजा पाठ करें या करवाएं और गरीबों व ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।

4. कुलदेवता की पूजा करते समय शुद्ध देसी घी का दीया, धूप, चंदन और कपूर जलाना चाहिए साथ ही प्रसाद स्वरूप फल , मिठाई का भोग भी लगाना चाहिए। कुलदेवता को चंदन और चावल का टीका अर्पण करते समय ध्यान रखें की टूटे हुए यां खंडित चावल ना हों। कुलदेवता को हल्दी में लिपटे पीले चावल पानी में भिगोकर अर्पण करना शुभ माना जाता है। पूजा के समय पान के पत्ते का बहुत महत्व है जिसके साथ सुपारी, लौंग, इलायची और गुलकंद भी अर्पण करना चाहिए। कुलदेवी या देवता को पुष्प चढ़ाते हुए आपको इन्हें पानी में अच्छी तरह से धोना चाहिए। सभी देवी-देवताओं की पूजा जिस तरह सुबह-शाम की जाती है, उसी तरह कुलदेवी और देवता की पूजा भी दीपक जलाकर करनी चाहिए।

गुरुवार, 7 मार्च 2024

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? जानें इससे जुड़ी कथाएं

 महाशिवरात्रि 08 मार्च विशेष    


*क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? जानें इससे जुड़ी कथाएं, महूर्त, विधि*

पौराणिक कथा के अनुसार, देवों के देव महादेव और मां पार्वती का विवाह फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। इसी वजह से हर साल फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर शिव भक्त भगवान शिव की बारात निकालते हैं। साथ ही भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही व्रत करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं

मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से साधक को वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है। हालाँकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।

माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।

अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।

महाशिवरात्रि अगर शनिवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है। 

           महाशिवरात्रि पूजा विधि

इस दिन सुबह सूर्योंदय से पहले उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाएं। अपने पास के मंदिर में जाकर भगवान शिव परिवार की धूप, दीप, नेवैद्य, फल और फूलों आदि से पूजा करनी चाहिए। सच्चे भाव से पूरा दिन उपवास करना चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए और रुद्राभिषेक करना चाहिए। इस दिन शिव जी रुद्राभिषेक से बहुत ही जयादा खुश हो जाते हैं. शिवलिंग के अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी इत्यादि का उपयोग किया जाता है। शाम के समय आप मीठा भोजन कर सकते हैं, वहीं अगले दिन भगवान शिव के पूजा के बाद दान आदि कर के ही अपने व्रत का पारण करें। अपने किए गए संकल्प के अनुसार व्रत करके ही उसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। रात को चार पहाड़ जागकर यदि संभव ना हो तो कम से कम रात्रि 12 बजें के बाद थोड़ी देर जाग कर भगवान शिव की आराधना करें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, इससे आर्थिक परेशानी दूर होती हैं। इस दिन सफेद वस्तुओं के दान की अधिक महिमा होती है, इससे कभी भी आपके घर में धन की कमी नहीं होगी। अगर आप सच्चे मन से मासिक शिवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपका कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से हो जायेगा. इस दिन शिव पार्वती की पूजा करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता हैं।

*शिवरात्रि तीन पहर अभिषेक, पूजन एवं जागरण मुहूर्त*

चतुर्दशी तिथि प्रारंभ👉 8 मार्च को रात्रि 09.55 से

चतुर्दशी तिथि समाप्त - 9 मार्च, सायं 06.16 पर। 

रात्रि प्रथम प्रहर पूजन समय👉 सायं 06.25 से रात्रि 09.27 तक।

रात्रि द्वितीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 09.27 से 12.31  तक।

रात्रि तृतीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 12.31 से  03.05 तक।

रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजन समय👉 अंत:रात्रि 03.05 से 09 मार्च  प्रातः 06.35 तक।

पारण समय👉 09 मार्च को प्रातः 06.37 से दिन 03.27 तक।

शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व-

माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।

उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।

शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।

शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व -

बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।

शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है। फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।

धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।

दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।

पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।

*समुद्र मंथन की कथा*

समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह  हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है

*शिकारी की कथा* 

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। 

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने  पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।


*भगवान गंगाधर की आरती*

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।

गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।

रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।

तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।

किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।

क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।

चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।

अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।

त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।

डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।

वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।

इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।

नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।

अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।

रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।


शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥


*त्रिगुण शिवजी की आरती*

ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।

जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।

पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

 ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।      


सोमवार, 4 मार्च 2024

मनोजवं मारुत तुल्य वेगम जितेंद्रियम् बूद्धिमतां वरिष्ठम् वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम् श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्धे"

     


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।। अर्थात अतुल बल के धाम, सोना के पहाड़ (सुमेरु) के जकाँ कान्तियुक्त शरीर बला, दैत्य रूपी वन के ध्वंस करवाक लेल अग्नि रूप, ज्ञानी सभक महाज्ञानी, समस्त गुण केर निधान, वानर केर स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र हनुमान जी के हम प्रणाम करै छी। हनुमान जी एकमात्र एहन देवता छैथि जे शक्तिशाली, विनम्र आ तुरंत प्रसन्न होमय बला छैथि। एतवे नहि ओ चारू युग मे उपस्थित छैथि। हिनक भक्ति करयबला के कखनो कोनो संकट नहि अबैत छैक। भक्त के कोनो भय नहि सता सकैत छैक। ब्रम्हांडपुराण के अनुसार हनुमानजी के पाँच टा भाई छलखिन जे विवाहित छलाह। नाम रहैन - मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान आ घृतिमान। सभ हनुमान जी सँ छोट छलखिन आ सभ भाई के धिया पुता छलैन्ह ।ब्रह्मपुराण केर अनुसार हनुमानजी के पिता केसरी कुंजर के बेटी अंजना के पत्नी के रूप में स्वीकार कयने छलाह। अंजना बहुत सुंदर छलीह। हिनके गर्भ सँ प्राणस्वरूप वायु के अंश सँ हनुमान केर जन्म भेल छलन्हि। "मनोजवं मारुत तुल्य वेगम जितेंद्रियम् बूद्धिमतां वरिष्ठम् वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम् श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्धे"